घर की संपत्ति को लेकर परिवारों में विवाद कोई नई बात नहीं है। भाई-बहन, चाचा-भतीजा, यहां तक कि मां-बेटे के बीच भी संपत्ति को लेकर झगड़े आम हो गए हैं। इन विवादों की सबसे बड़ी वजह है—कानूनी जानकारी की कमी। खासकर बेटियों को उनके हक से वंचित रखा जाता है, क्योंकि समाज में आज भी कई जगह पुरानी सोच हावी है।
भारत में दो तरह की संपत्ति होती है
भारतीय कानून के अनुसार, संपत्ति को दो भागों में बांटा गया है—पैतृक संपत्ति और स्वयं अर्जित संपत्ति।
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पैतृक संपत्ति वह होती है जो दादा-परदादा से मिलती है और कम से कम तीन पीढ़ियों से ऊपर चली आ रही हो।
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स्वयं अर्जित संपत्ति वह होती है जिसे किसी व्यक्ति ने अपनी मेहनत, नौकरी, व्यापार, गिफ्ट, या वसीयत से अर्जित किया हो।
स्वयं अर्जित संपत्ति में पिता का पूरा अधिकार
अगर संपत्ति पिता ने खुद की कमाई से खरीदी है, तो उस पर उनका पूरा अधिकार होता है। वह इसे किसी को भी दे सकते हैं—बेटे को, बेटी को, या किसी बाहर वाले को भी।
अगर पिता वसीयत बना देते हैं और उसमें सिर्फ एक ही बच्चे को संपत्ति देना तय करते हैं, तो वह पूरी तरह वैध होता है। बशर्ते वसीयत कानूनी रूप से सही तरीके से तैयार की गई हो।
अगर वसीयत नहीं बनी हो तो क्या होगा?
यदि पिता की मृत्यु बिना वसीयत के हो जाती है, तो उनकी स्वयं अर्जित संपत्ति का बंटवारा हिंदू उत्तराधिकार कानून के अनुसार होगा। इस स्थिति में बेटा और बेटी दोनों को बराबर का हक मिलेगा। इसीलिए समय रहते वसीयत बनाना झगड़ों से बचने का अच्छा तरीका है।
पैतृक संपत्ति में जन्म से हक
पैतृक संपत्ति में बेटा और बेटी दोनों का जन्म से ही बराबर अधिकार होता है। 2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून में हुए संशोधन के बाद बेटियों को भी बेटों के समान अधिकार दे दिया गया। इसका मतलब है कि अब बेटियों को सिर्फ शादी के बाद ही नहीं, बल्कि बचपन से ही पैतृक संपत्ति में बराबर हिस्सा मिलता है।
धर्म के अनुसार संपत्ति के नियम
भारत में संपत्ति कानून धर्म के आधार पर भी अलग-अलग होते हैं।
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हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन धर्म के लोगों पर हिंदू उत्तराधिकार कानून लागू होता है जिसमें बेटा और बेटी दोनों को बराबर हक है।
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मुस्लिम कानून में बेटियों को बेटों की तुलना में लगभग आधा हिस्सा मिलता है। हालांकि कई कोर्ट फैसलों में बेटियों को बराबरी देने की बात कही गई है।
बेटियों को क्यों नहीं मिल पाता उनका हक?
अक्सर बेटियों को उनका कानूनी हक नहीं मिल पाता, क्योंकि
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उन्हें अधिकार की जानकारी नहीं होती
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समाज और परिवार का दबाव होता है
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दस्तावेज छिपा लिए जाते हैं
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वसीयत की जानकारी नहीं दी जाती
इस वजह से बेटियां चुप हो जाती हैं और संपत्ति का हिस्सा नहीं मांगतीं।
समझदारी और पारदर्शिता से रुक सकते हैं झगड़े
अगर परिवार में शुरू से ही पारदर्शिता रखी जाए, सभी को बराबरी का अधिकार दिया जाए और समय पर वसीयत बनाई जाए, तो बहुत से झगड़े टल सकते हैं।
संपत्ति को लेकर विवाद ज्यादातर तभी होते हैं जब जानकारी की कमी होती है या बातचीत नहीं होती।
बेटी और बेटा दोनों बराबर हैं
आज का कानून साफ कहता है—बेटा हो या बेटी, दोनों को संपत्ति में बराबर का अधिकार है। अब समय आ गया है कि हम समाज की पुरानी सोच को बदलें और बेटियों को उनका हक दिलाएं।
Disclaimer:
यह लेख केवल सामान्य जानकारी देने के उद्देश्य से लिखा गया है। संपत्ति से जुड़े हर मामले में नियम परिस्थिति के अनुसार अलग हो सकते हैं। किसी भी कानूनी कदम से पहले योग्य वकील या सलाहकार से जरूर राय लें।